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उपभोक्ता जागरूकता के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना


1. उपभोक्ता जागरूकता और प्रतितोष तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना।

राष्ट्रीय विकास परिषद की 21.12.2002 को आयोजित 50वीं बैठक में लिए गए निर्णय के परिणामस्वरूप उपभोक्ता संरक्षण की एक प्रबलन क्षेत्र के रूप में शिनाख्त की गई और उपभोक्ता मामले विभाग को उपभोक्ता जागरूकता और प्रतितोष तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रवर्तन के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना विकसित करने का कार्य सौंपा गया।

यह उल्लेखनीय है कि 10वीं योजना के दौरान विभाग को योजना के तहत उपभोक्ता संरक्षण और संबंधित गतिविधियों के लिए केवल 27.20 करोड़ रुपए का अनुमोदन प्राप्त हुआ था। विभाग ने योजना अवधि के दौरान इस आबंटन को अनुलग्नक I में दिए गए ब्यौरे के अनुसार बढ़ाकर 312 करोड़ रुपए करने का प्रस्ताव किया था और निम्नलिखित राष्ट्रीय कार्य योजना का प्रस्ताव रखा था:‑

उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रम शुरु करना ‌: विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा डील किए जा रहे उपभोक्ता हित के विभिन्न विषयों पर विभिन्न वर्गों के 100 करोड़ से भी अधिक लोगों को शिक्षित करना एक अति विशाल कार्य है और इसको एक सतत राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में तब तक हाथ में नहीं लिया जा सकता जब तक योजना आयोग इसके लिए पर्याप्त बजट अनुमोदित न कर दे। इसलिए उपभोक्ता मामले विभाग ने देश में उपभोक्ता जागरूकता पैदा करने और और उसको मजबूत बनाने के लिए 10वीं योजना अवधि के दौरान 200 करोड़ रुपए के आबंटन का प्रस्ताव रखा था।

इस योजना अवधि के दौरान विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय के परामर्श से 200 करोड़ रुपए का एक मीडिया प्लान भी बनाया गया है जो अनुलग्नक – II पर है।

उपभोक्ता संरक्षण के लिए 3.10 करोड़ रुपए के मौजूदा वार्षिक आबंटन से विभाग आकाशवाणी पर 15 मिनट का एक नियमित साप्ताहिक रेडियो कार्यक्रम, दूरदर्शन पर हाल ही में शुरु किया गया 30 मिनट का एक वीडियो कार्यक्रम चला रहा है। इसके अलावा, स्कूली बच्चों क लिए सी डी पर एक शैक्षिक वीडियो कार्यक्रम तैयार किया गया है और समय समय पर मुद्रित प्रचार किया जाता है। इन कार्यक्रमों को जारी रखा जाएगा।

2. उपभोक्ता शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाना:

1. राष्ट्रीय आयोग के आधार ढांचे का सुदृढ़ीकरण: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 और 20 के उपबंधों के अनुसार राष्ट्रीय आयोग की स्थापना करना और उसके लिए आवश्यक आधार ढांचा और कर्मचारियों की व्यवस्था करना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग जो शीर्षस्थ उपभोक्ता न्यायालय है, 1988 से जनपथ भवन, नई दिल्ली में कार्य कर रहा है। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा मुहैया कराई गई मौजूदा जगह कार्यालय स्थान के लिए उनकी जरूरतों को पूरा करने हेतु बहुत कम है। इसमें पार्किंग की कोई सुविधा नहीं है और अत्यन्त भीड़ भाड़ वाले इलाके में अवस्थित है जो उपभोक्ताओं के लिए किसी भी तरह से सुविधाजनक नहीं है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक महसूस किया गया कि राष्ट्रीय आयोग के लिए उसके स्तर के अनुरूप एक अलग भवन हो, क्योंकि यह एक पाँच सदस्यों वाला आयोग है और इसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं और इसके निर्णयों के खिलाफ अपील उच्चतम न्यायालय में होती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का दिसम्बर, 2007 में संशोधन किए जाने के बाद अब राष्ट्रीय आयोग अतिरिक्त पीठें गठित कर सकता है। दूसरी पीठ ने 24 सितम्बर, 2003 से काम करना शुरु कर दिया है। सा0 का0 नि0 संख्या 175(अ) तारीख 5 मार्च, 2004 के तहत उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) नियम, 2004 की अधसिचूना के साथ ही आयोग में सदस्य के दो अतिरिक्त पद सृजित किए गए हैं जिससे आयोग शीघ्र ही तीसरी पीठ का गठन कर लेगा। इन पीठों के लिए स्थल की आवश्यकता है। सरकार के अनुरोध पर शहरी विकास मंत्रालय ने आई एन ए काम्पलैक्स में 27 लाख रुपए की लागत पर एक भू खण्ड आबंटित किया है। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा दिए गए अनुमान के अनुसार भवन निर्माण के कार्य को पूरा करने के लिए 11 करोड़ रुपए की आवश्यकता है जिसमें से योजना आयोग ने 10वीं योजना में 6.50 करोड़ प्रदान करने की सहमति दी है। उपभोक्ता भवन के पूर्ण निर्माण के लिए 4.50 करोड़ रुपए की कमी को पूरा किया जाना है। 

2. राष्ट्रीय अयोग की सर्किट पीठों का आयोजन: राष्ट्रीय आयोग दिल्ली में अवस्थित है और पूरे देश भर से उपभोक्ताओं को अपने मामलों को लेकर दिल्ली आना पड़ता है। उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए यह निर्णय लिया गया है कि राष्ट्रीय आयोग अलग‑अलग राज्यों में 2‑3 सप्ताह की अवधि के लिए सर्किट पीठें आयोजित करेगा। राज्य सरकारों के परामर्श से प्रबंध किए जा रहे हैं जिनकी जरूरत इस प्रयोजन के लिए बुनियादी सुविधाएं और आधार ढांचा तैयार करने के लिए है। 

3. उपभोक्ता मंचों को मजबूत करना: जहां तक राज्य स्तर पर उपभोक्ता मंचों का संबंध है, हालांकि राज्यों में इन मंचों की स्थापना करना और इनके सुचारु कार्यकरण के लिए आवश्यक आधार ढांचे की व्यवस्था करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, फिर भी राज्यों की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए बहुत से राज्य उपभोक्ता मंचों के न्यूनतम आधार ढांचा संबंधी जरूरतों को भी पूरा करने में सक्षम नहीं है जिसका प्रभाव मंचों की कार्यकुशलता पर पड़ता है। अत: योजना आयोग ने आधार ढांचे को मजबूत बनाने हेतु 1995 में कार्य कर रहे 32 राज्य आयोगों को 50 लाख रुपए प्रति राज्य आयोग और 456 जिला मंचों को 10 लाख रुपए प्रति जिला मंच की दर से एक‑बारगी अनुदान के रूप में 1995‑99 के दौरान 61.80 करोड़ रुपए का आबंटन किया ताकि राज्य सरकारों के प्रयासों को संबल मिल सके। 1995 के बाद नए सृजित किए गए जिलों/राज्यों में 113 जिला मंच और 3 राज्य आयोग शामिल किए गए हैं। राज्य सभी उपभोक्ता मंचों के लिए उचित आधार ढांचा तैयार करने हेतु बार ‑बार अतिरिक्त निधियों की मांग कर रहे हैं।

उपर्युक्त को देखते हुए विभाग ने निम्नलिखित का प्रस्ताव किया है:‑ 

1. 1995 के बाद बनए गए मंचों के आधार ढांचे को मजबूत बनाने के लिए तीन राज्य आयोगों के लिए 75 लाख रुपए प्रति आयोग और 113 जिला मंचों के लिए 15 लाख रुपए प्रति मंच की दर से 19.20 करोड़ रुपए की राशि आबंटित की जाए। 

2­. अंडमान निकोबार द्वीप समूह, दमन व दीव तथा चंडीगढ़ के संघ राज्य क्षेत्रों के लिए आधार ढांचे को मजबूत बनाने हेतु 1.62 करोड़ रुपए की राशि का प्रस्ताव किया गया है क्योंकि पूर्व में वे पूरी राशि आहरित नहीं कर पाए। 

3. 1995 के दौरान आबंटित एक बारगी अनुदान के तहत कवर किए गए जिला मंचों को 5 लाख रुपए प्रति मंच और राज्य आयोगों को 25 लाख रुपए प्रति आयोग की दर से आगे और सहयोग देने के लिए 30.90 करोड़ रुपए की राशि का प्रस्ताव किया गया है। 

4. उपभोक्ता अदालतों अर्थात राष्ट्रीय आयोग, 35 राज्य आयोगों और 571 जिला मंचों को कम्प्यूटर नेटवर्किंग के जरिए आपस में जोड़ने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार 27.39 करोड़ रुपए की राशि का प्रस्ताव किया गया है जिससे इसकी मानिटरिंग हो सकेगी और विविध प्रकार के डाटा प्राप्त किए जा सकेंगे तथा ये मंच उपभोक्ताओं के हित में प्रभावी तरीक से कार्य कर सकेंगे।

3. बाट तथा माप निदेश मानक प्रयोगशालाओं को मजबूत बनाना:

उपभोक्ता मामले विभाग व्यापार और वाणिज्य में प्रयोग में लाए जाने वाले सभी बाट तथा माप उपकरणों के विनियमन के लिए बाट तथा माप मानक अधिनियम, 1976 और बाट तथा माप मानक प्रवर्तन अधिनियम, 1985 को भी प्रशासित करता है। अत: उपभोक्ताओं के हित में यह आवश्यक है कि वह उपकरण सही हों ताकि उपभोक्ताओं को चीजें सही मात्रा में प्राप्त हों जिसके लिए वे भुगतान करते हैं। व्यापार और वापणिज्य में प्रयुक्त बाट तथा माप उपकरणों में किसी प्रकार की अशुद्धता के कारण उपभोक्ता को सामान्य तौर पर हजारों करोड़ों रुपए तक का नुकसान हो सकता है। अत: बाट तथा माप उपकरणों को जिन बाट तथा माप मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है उनके आधार पर आवधिक जांच करके नियंत्रित किया जाता है। तथापि, अधिनियमों और नियमों के उपबंधों के प्रवर्तन की जिम्मेदारी राज्य सरकरों की है। वे 1960 के दशक के दौरान खरीदे गए मानकों को वित्तीय अड़चनों के कारण अपग्रेड करके अपनी राज्य मानक प्रयोगशालाओं (द्वितीयक मानक) में उन मानकों को सहयोजित नहीं कर पाए जिनको बनाए रखना अपेक्षित था। मानक न बदले जाने के परिणामस्वरूप व्यापार में मापन में अशुद्धता आई और उपभोक्ताओं के दिन प्रति दिन के आधार पर करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। अत: यह नितान्त आवश्यक है कि प्रत्येक प्रयोग शाला को मानक तुलाओं का एक सैट प्रदान करके राज्य बाट तथा माप प्रयोगशालाओं को अपग्रेड किया जाए ताकि वह एक बैंचमार्क की तरह कार्य करें और राज्य में प्रयोग में लाए जा रहे अन्य सभी मानकों का उनके अनुसार अंशाकन किया जा सके। देश के विभिन्न राज्यों में 102 द्वितीयक मानक प्रयोगशालाएं कार्य कर रही हैं जिनको उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए तुरन्त अपग्रेडेशन किए जाने की आवश्यकता है। केन्द्र सरकार के उपभोक्ता कल्याण कोष के जरिए विभिन्न क्षेंत्रों में अवस्थित 9 प्रयोगशालाओं के लिए मानकों को पहले ही अपग्रेड कर दिया है।

दसवीं योजना में शेष 93 राज्य मानक प्रयोगशालाओं का चरणबद्ध तरीके से सुदृढ़ीकरण के लिए द्वितीयक मानक प्रयोगशाला को मानक तुलाओं का एक सैट प्रदान करने के लिए 15 लाख रुपए की दर से 14 करोड़ का एक बारगी अनुदान के लिए निधियां प्रदान करने का प्रस्ताव है।

4. क्षेत्रीय निर्देश मानक प्रयोगशालाओं के लिए अतिरिक्त स्टाफ:

विभाग ने देश के पांच क्षेत्रों में राज्यों और उद्योगों को अंशाकन और सत्यापन प्रदान करने के लिए पाँच क्षेत्रीय निर्देश मानक प्रयोगशालाओं की स्थापना की हैं। ये वैज्ञानिक संस्थाएं राष्ट्रीय बाट तथा माप मानकों के मूल्यों का वितरण वाणिज्यिक बाट तथा माप मानकों को करने के लिए मुख्य संपर्क सूत्र के रूप में कार्य करते हैं। इन संस्थाओं के उचित कार्यकरण से यह सुनिश्चित होगा कि वाणिज्यिक सौदों में किए गए मापन में कोई गलती नहीं है। तथापि, इन संस्थाओं के कार्यकरण पर तकनीकी कर्मचारियों की कमी के कारण भारी प्रतिकूल प्रभाव पडा। अत: विभाग सभी रिक्त पदों को पुनर्जीवित करके या उनके संवैधानिक रूप से अपेक्षित पदों के रूप में व्यपगमन से छूट देकर पर्याप्त कर्मचारीवृंद मुहैया कराने के एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इसी प्रकार वेतनमानों में संशोधन का भी प्रस्ताव रखा गया है ताकि इन पदों के लिए अर्हता प्राप्त कार्मिक आकर्षित हो सकें।

5. उपभोक्ता कल्याण कोष में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की अधिक संलग्नता:

केन्द्र सरकार ने उपभोक्ता कल्याण कोष के सृजन के लिए 1991 में केन्द्रीय उत्पाद और नमक अधिनियम, 1944 का संशोधन किया। कोष की स्थापना राजस्व विभाग द्वारा की गई और 1994 से उसका प्रचालन उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा किया जा रहा है। इस कोष में वह राशि जमा की जा रही है जो विनिर्माताओं को नहीं लौटाई जाती है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं का कल्याण, संवर्धन और संरक्षण करने, जागरूकता पैदा करने और देश में राज्य स्तर पर ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तथा उनके स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठनों की अधिक भागीदारी हासिल करने के लिए विभाग ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं:‑ 

1. केन्द्रीय उपभोक्ता कल्याण कोष का विकेन्द्रीकरण करना तथा उपभोक्ता संगठनों के बीच निधियों का तुरन्त और प्रभावी वितरण और निगरानी के लिए राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्रों के पास विशिष्ट उपभोक्ता कल्याण कोष कार्यक्रम के लिए कुछ निधियां रखना।

2. राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को अपने उपभोक्ता कल्याण कोष स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु केन्द्र सरकार 50:50 (केन्द्र व राज्य) के अनुपात से बीज राशि प्रदान करेगी।

6. जिला प्रशासन की अधिक भागीदारी:

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के 2002 के संशोधित उपबंध के साथ ही अब देश के प्रत्येक जिले में जिलाधीश/कलैक्टर की अध्यक्षता में जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषदें स्थापित की जानी हैं जिनका उद्देश्य निम्नतम स्तर पर उपभोक्ता के अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण करना है। विभाग ने सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से जिले में नाडल अधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए किसी अधिकारी को जिला उपभोक्ता संरक्षण अधिकारी पदनामित करने का भी अनुरोध किया है।

विभाग ने जिला कलैक्टरों जिला मजिस्ट्रेटों की प्रभावी भागीदारी के लिए कार्रवाई की मदें भी विकसित की हैं और जिला कलैक्टरों का एक वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने का प्रस्ताव किया है ताकि उपभोक्ता आन्दोलन का प्रसार एक व्यवस्थित तरीके से हो सके। इससे विभाग को देश में विशिष्ट समस्याओं/जरूरतों से निपटने तथा उपभोक्ताओं के बीच बेहतर जागरूकता के विकास में ही नहीं अपितु उपभोक्ता मंचों के साथ बेहतर समन्वय करने में भी सहायता मिलेगी।

7. राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण नीति:

विभाग एक राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण नीति विकसित करने पर विचार कर रहा है ताकि उपभोक्ताओं के प्राथमिकता वाले सरोकारों को सभी पणधारियों द्वारा व्यवस्थित तरीके से पूरा किया जा सके। इस से केन्द्र और राज्य सरकारों के विभिन्न अन्य मंत्रालय/विभाग भी उपभोक्ताओं के हितों के प्रति अधिक जिम्मेदार होंगे।

8. कार्यकारी दल:

केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद की 16.7.2003 को हुई 23वीं बैठक की सिफारिश पर महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के तौर तरीकों पर विचार करने के लिए मंत्रालय में निम्नलिखित छ: कार्यदल गठित किए हैं‑

क्रम संख्या कार्यदल का नाम गठन की तारीख

1. खाद्य सुरक्षा 10.10.2003

2. भ्रामक विज्ञापन 01.01.2004

3. औषधि, फार्मास्यूटिकल और चिकत्सा उपस्कर/उपकरण 07.01.2004

4. तम्बाकू उत्पादों से संबंधित उपभोक्ता स्वास्थ्य और सुरक्षा 08.01.2004

5. नकली, जाली कपटपूर्ण, निषिद्ध उत्पाद 12.01.2004

उपभोक्ता हितों से संबंधित निम्नलिखित नए अधिनियम बनाने/मौजूदा अधिनियमों में संशोधन के प्रस्ताव शामिल करना: उदाहरणार्थ

6. क. उत्पाद दायित्व अधिनियम।

   ख. संविदा की अनुचित शर्तें अधिनियम 16.01.2004

   ग. बिल्डर्स लाइसेंसिंग बोर्ड अधिनियम

   घ. व्हिसिल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम

9. उपभोक्ता के हितों के संवर्धन के लिए भी एक स्थायी समिति )गठित की गई है जिसके विचाराणीय विषय इस प्रकार हैं:‑

1. उपभोक्ताओं के मुख्य सरोकारों का पता लगाना।

2. उपभोक्ताओं को शिक्षित करना और उनके सरोकारों को पूरा करना।

3. उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए विभिन्न पणधारियों को शामिल करने के लिए तौर तरीकों का पता लगाना, और

4. उपभोक्ताओं के हितों को सभी प्रचालनों, चाहे वे सरकारी, सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के क्यों न हो, में पमुखता देने के तौर तरीकों का पता लगाना।

10. उपभोक्ता क्लब:

उपभोक्ता कल्याण कोष के तहत उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित मुद्दों में विद्यार्थियों को विनोदपूर्ण और अनौपचारिक तरीके से शामिल करने की एक नई स्कीम शुरु की गई है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री जी ने 24 सितम्बर, 2003 को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के अवसर पर दिल्ली के स्कूलों में ‘उपभोक्ता क्लबों’ की शुरुआत की। देश के विभिन्न राज्यों से उपभोक्ता क्लब खोलने के प्रस्ताव प्राप्त हो रहे हैं। स्कीम के तहत सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को कवर किया जाएगा।

11. अनुसंधान संस्थानों/विश्वविद्यालयों/कालेजों की भागीदारी:

उपभोक्ता कल्याण के क्षेत्र में अनुसंधान और मूल्यांकन अध्ययन अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों और कालेजो को प्रायोजित करने के उद्देश्य से उपभोक्ता कल्याण कोष के अंतर्गत एक अन्य स्कीम तैयार की गई है। अनुसंधान संस्थानों आदि के भागीदारी को बढ़ावा देने और ऐसे संस्थानों से प्राप्त प्रस्तावों को विकसित करने के लिए सेमिनारों और कार्यशालाओं के आयोजन की शुरुआत करने के लिए आई आई पी ए, (भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली), की नोडल संगठन के रूप में पहचान की गई है।

12. नेशनल कंज्यूमर हैल्पलाइन:

विभाग, उपभोक्ता कल्याण कोष की निधियों का उपयोग कर आई आई टी, दिल्ली,

दिल्ली विश्वविद्यालय आदि जैसे प्रमुख संस्थानों की सहायता से दिल्ली में एक नेशनल कंज्यूमर हैल्पलाइन स्थापित करने पर विचार कर रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय ने स्कीम में रुचि दिखाई है और इस उद्देश्य के लिए विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर रहा है। स्कीम के उद्देश्य इस प्रकार हैं:‑ 

1. उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूकता पैदा करना।

2. उपभोक्ताआं को टेलीफोन और व्यक्तिगत रूप से परामर्श प्रदान करना।

3. उपाभोक्ता विवादों को कोर्ट से बाहर निपटाने के लिए सहायता प्रदान करना।

हेल्पलाइन के लिए अपनाई जाने वाली क्रियाविधी में, प्रमुख समाचार पत्रों के माध्यम से नियमित अंतराल पर परामर्श और सहायता देने के लिए निशुल्क टेलीफोन लाइनें और प्रशिक्षित जनशक्ति, शामिल होंगे।

13. उपभोक्ता कार्यकर्ता समूह:

विभाग में एक उपभोक्ता कार्यकर्ता समूह गठित किया गया जिसमें विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और कुछ अति प्रतिष्ठित और अनुभवी कार्यकर्ता शामिल हैं। यह समूह ऐसे नाजुक क्षेत्रों का पता लगाएगा जिनमें विभाग को उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सक्रिय कार्रवाई आरम्भ करनी होगी और उन विभिन्न तरीकों की पहचान करेगा जिनसे यह कार्रवाई हो पाएगी। यह समूह विभाग को उपभोक्ता से संबंधित प्रतिदिन समाचार पत्रों आदि में आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए निर्देशित करेगा।

14. सोने की हॉलमार्किंग:

उपभोक्ता हित और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए, स्वर्ण आभूषण प्रमाणन

(स्वर्ण आभूषणों की हॉलामार्किंग नाम से लोकप्रिय है) को अप्रैल, 2000 में स्वैच्छिक आधार पर आरम्भ किया गया था। इस स्कीम का उद्देश्य सोने की शुद्धता या उसकी उत्कृष्ठता पर उपभोक्ताओं को तृतीय पक्ष आश्वासन देना है। इस स्कीम को देश भर में भारतीय मानक ब्यूरो के क्षेत्रीय और शाखा कार्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से प्रचालित किया जाता है। अब तक इस उद्देश्य के लिए 14 हॉलमार्किंग केन्द्रों को मान्यता दी गई है और इस स्कीम के अंतर्गत 600 से अधिक जौहरियों को प्रमाणित किया गया है। भारतीय मानक ब्यूरो और राष्ट्रीय परीक्षणशाला की प्रयोगशालाओं को परीक्षण करने और हालमार्किंग की गई सोने की वस्तुओं के लिए आश्वासन प्रमाणपत्र देने के लिए भी सुसज्जित करने का प्रस्ताव है। सोने की हालमार्किंग के नेटवर्क का पूरे देश में विस्तार करने की एक राष्ट्रीय योजना भी तैयार की जा रही है|

15. राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की कार्य योजना:

मंत्रालय ने उपभोक्ता जागरूकता प्रतितोष और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रवर्तन और उस के लिए उपयुक्त बजट आबंटन के लिए भी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से अपनी कार्य योजना तैयार करने का अनुरोध किया है। राज्य सरकारों से अपने राज्य की वार्षिक योजना में उपभोक्ता संरक्षण तंत्र के सुदृढ़ीकरण के लिए प्रावधान करने और सभी संबंधितों को शामिल करके अपने‑अपने राज्य में उपभोक्ताओं को सतत आधार पर शिक्षित करने को भी कहा गया है।

16. राज्यों/संघ राज्य क्षेंत्रों द्वारा की गई प्रगति की समीक्षा:‑

कार्य कुशलता में सुधार लाने और उपभोक्ता न्यायालयों में लम्बित मामलों को निपटाने के लिए राज्य सरकरों/संघ राज्य क्षेत्रों को तत्काल निम्नलिखित उपाय करने की सलाह दी गई है:‑ 

1. उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित कार्यों के लिए पूर्णकालिक सचिव वाले अलग विभाग गठित किया जाए।

2. मामलों के 90‑150 दिनों की समय सीमा के भीतर निपटान के लिए राज्य आयोगों क लिए सर्किट/अतिरिक्त पीठों और अतिरिक्त जिला मंचों का गठन किया जाए।

3. निष्क्रिय उपभोक्ता मंचों को सक्रिय बनाने के लिए अध्यक्ष/सदस्यों के रिक्त पदों को भरा जाए।

4. वर्तमान अध्यक्षों/सदस्यों की पूर्ण क्षमता के उपयोग के लिए सभी कार्यात्मक पदों की व्यवस्था की जाए।

5. भावी रिक्तियों पर नियुक्ति के लिए अध्यक्षों/सदस्यों का एक पैनल रखा जाए।

6. उपभोक्ता मंचों को कम्प्यूटर नेटवर्किंग सहित पर्याप्त आधार ढांचा प्रदान किया जाए।

7. राज्य और जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदें स्थापित की जाएं और सुनिश्चित किया जाए कि उनकी वर्ष में 2 बैठकें हों।

8. प्रत्येक जिले में किसी उपयुक्त अधिकारी को (जिला उपभोक्ता संरक्षण अधिकारी) पद नामित किया जाए।

राज्य सरकारों द्वारा की गई कार्रवाई की समीक्षा बैठकों, क्षेत्रीय दौरों और निगरानी फारमेंटों के माध्यम से नियमित रूप से निगरानी भी की जा रही है। 

अनुलग्नक ‑ I

उपभोक्ता जागरूकता के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना
मद 10वी योजना का आबंटन (रुपए करोड़ में) 10वीं योजना का प्रस्तावित आबंटन रुपए करोड़ में
उपभोक्ता संरक्षण 15.50 200.00
नए उपभोक्ता मंचों के लिए एक बारगी अनुदान -- 19.20
पुराने उपभोक्ता मंचों (पूर्व अनुदान के अतिरिक्त) के लिए एक बारगी अनुदान -- 30.90
संघ राज्य क्षेत्रों के लिए एक बारगी अनुदान, जिसे लिया नहीं जा सका -- 1.62
उपभोक्ता मंचों का कम्प्यूटरीकरण -- 27.39
कुल 15.50 279.11
आई एन ए काम्पलैक्स राष्ट्रीय अयोग के कार्यालय भवन का निर्माण 4.00 11.00
केन्द्रीय सरकार की प्रयोगशालाओं के लिए बाट तथा माप मानकों की खरीद 7.70 7.70
राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों की प्रयोगशालाओं के लिए बाट तथा माप मानकों की खरीद --- 14.00
कुल 7.70 21.70
कुल योग (1+2+3) 27.20 311.81
उपभोक्ता जागरूकता के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना
गतिविधियां रुपये करोड़ में
दैनिक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में विज्ञापन 19.60
24 टी वी सीरियलों और 5 स्पाट्स का प्रोडक्शन और टेलीकास्टिंग 25.87
10 आडियो स्पाट्स का प्रोडक्शन और प्रसारण। 20.10
डी ए वी पी के माध्यम से स्पाट्स प्लस, सोनी, जी, आज तक, एन डी टी वी, ई टी वी, जी क्षेत्रीय और दक्षिण भारतीय चैनलों पर स्पाट्स/टी वी एपिसोड्स का टेलीकास्टिंग 57.60
अन्य उपभोक्ता जागरूकता गतिविधियां 0.30
1. उपभोक्ता अधिकारों पर स्कूली बच्चों को को शिक्षित करने के लिए डी ए वी पी के माध्यम से सीरीज की डबिंग और वितरण
2. डी ए वी पी के माध्यम से उपभोक्ता संरक्षण संबंधी प्रचार सामग्री की डिजाइनिंग, प्रिटिंग और वितरण 1.00
3. आउटडोर प्रचार 1) होर्डिंग 2) बस पेनल 3) किओस्क 46.76
रेडियो कार्यक्रमों का निर्माण और आकाशवाणी के माध्यम से प्रसारण 5.06
क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय के माध्यम से प्रचार 10.00
गीत और नाटक प्रभाग के माध्यम से प्रचार 20.00
कुल 206.29